तुम्हें अलविदा कहने में इतना दर्द क्यों हैं
गर्मी के मौसम में हवा इतनी सर्द क्यों हैं
इन दोनों सवालों के जवाब में तेरा ही नाम क्यों हैं
तू साकी मैं पैमाना इतने नजदीक होने के बावजूद ये दिल अधूरा जाम क्यों हैं
तुम्हें अलविदा कहने में इतना दर्द क्यों हैं
मालूम हैं ...मालूम हैं
कि दूरियां भी है जरूरी सहनी पड़ेगी ये मजबूरी
ताकि कल जब वापस वही सुबह आए तो
मैं और तुम करेंगे यह अधूरी बात पूरी मालूम हैं
पर यह नजदीक लाने के लिए हमारे बीच अंतरों का हिसाब क्यों हैं
जिस मुकाबले का मैं हिस्सा तक नहीं
उसी का मिलता यह खिताब क्यों हैं
तुम्हें अलविदा कहने में इतना दर्द क्यों है
माना कि मांझी के घाव भरने में वक्त लगता हैं
आगे बढ़ाया हुआ हर वो कदम सख्त लगता हैं
आंखों से निकलते हुए आंसू जलता हुआ रक्त लगता हैं
और किसीका इतना जल्दी जिंदगी में अपना बन जाना बड़ा बेवक्त लगता हैं
माना... माना
लेकिन खुदा सुनने में देर ही लगाता हैं इस बात का तुम्हें भर्म क्यों हैं
किसी और के नापाक इरादों की सजा भरता मेरा ये कर्म क्यों हैं
हर हालात में सक्ती रखते ये हाथ आज नर्म क्यों हैं
और
वापस से ईश्क हुआ तो इस बात को मानने में इतनी शर्म क्यों हैं
तुम्हें अलविदा कहने में इतना दर्द क्यों हैं
गर्मी के मौसम में हवा इतनी सर्द क्यों हैं
इन दोनों सवालों के जवाब में तेरा ही नाम क्यों हैं
तू साकी मैं पैमाना इतने नजदीक होने के बावजूद ये दिल अधूरा जाम क्यों हैं
तुम प्यार के काबिल थीं और रहोगी
पहले शायद मेरी नहीं थीं पर अब हमेशा रहोगी !
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